भारत के इतिहास में 31 अक्टूबर की तारीख देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दिन के तौर पर दर्ज है। अपने फौलादी इरादों के लिए विख्यात और बड़े से बड़ा फैसला बेखौफ लेने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर की सुबह उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी।इंदिरा गांधी का भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट स्थान है। वह भारत की प्रथम और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थीं। अपने नेतृत्व और सशक्त निर्णयों के कारण उन्हें एक शक्तिशाली नेता के रूप में देखा जाता है।
उनका जीवन और राजनीतिक करियर प्रेरणादायक, संघर्षपूर्ण और साहसी था, जिसने भारतीय समाज और राजनीति में गहरी छाप छोड़ी है। यहाँ हम उनके जीवन, राजनीतिक करियर, निर्णयों और उनके योगदान को विस्तृत रूप से समझेंगे
इंदिरा गांधी का शुरुआती जीवन कैसी रही होगी?
इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की इकलौती संतान थीं। इंदिरा का बचपन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बीच बीता, क्योंकि उनके पिता जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभा रहे थे। इसी माहौल में उन्होंने संघर्ष, स्वतंत्रता और सामाजिक सेवा के गुण सीखे।इंदिरा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद और शांति निकेतन से प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। उनका अध्ययन का माहौल एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से होने के कारण बेहद प्रभावी था। इस दौरान उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपना समर्पण भी दर्शाया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गतिविधियों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की।
इंदिरा गांधी का स्वतंत्रता संग्राम पर अहम भूमिका और योगदान ।
इंदिरा गांधी ने 1930 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक युवा सेनानी के रूप में भाग लिया। उन्होंने ‘वानर सेना’ नामक एक युवा संगठन की स्थापना की, जिसके माध्यम से बच्चों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में छोटी-छोटी भूमिकाएँ निभाईं। यह संगठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में न केवल बच्चों की भागीदारी को सुनिश्चित करने का प्रयास था, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत भी बना।
इंदिरा गांधी का विवाह और व्यक्तिगत जीवन जीवन क्या था।
इंदिरा गांधी का विवाह 1942 में फिरोज गांधी से हुआ। फिरोज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे। उनके दो बेटे हुए – राजीव गांधी और संजय गांधी। हालाँकि, फिरोज गांधी का निधन 1960 में हो गया, जिसके बाद इंदिरा ने अपने परिवार के साथ राजनीतिक जीवन को नई दिशा देने का निर्णय लिया।
इंदिरा गांधी का राजनीतिक करियर की शुरुआत कैसे हुई होगी।
इंदिरा गांधी का राजनीति में औपचारिक प्रवेश 1959 में हुआ जब वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री होने के कारण वे पहले से ही कांग्रेस में सक्रिय थीं, लेकिन अब उन्होंने राजनीतिक निर्णयों में खुद को प्रमुख रूप से शामिल करना शुरू किया। 1964 में उनके पिता के निधन के बाद, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें अपनी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री नियुक्त किया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे संचार माध्यमों को जनसंपर्क का प्रमुख साधन बनाया।
प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल (1966-1977) के दशक से शुरु किया अपना कार्य।
लाल बहादुर शास्त्री के असामयिक निधन के बाद, 1966 में इंदिरा गांधी को भारत की प्रधानमंत्री चुना गया। उनके प्रधानमंत्री बनने के शुरुआती वर्षों में कई चुनौतियाँ थीं। उन्होंने गरीबी उन्मूलन, समाजवादी नीतियों और देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए। उनके प्रसिद्ध नारे “गरीबी हटाओ” ने देश की जनता को एक नई आशा दी। उन्होंने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिससे आर्थिक सुधारों को बल मिला।
1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण का इतिहास
इंदिरा गांधी का सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ना था। इस युद्ध का मुख्य कारण पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हो रहा अत्याचार और वहाँ के लोगों का समर्थन करना था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ और इंदिरा गांधी को एक साहसी नेता के रूप में सराहा गया। भारत की इस विजय ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक लोकप्रियता दिलाई।
इंदिरा गांधी का आपातकाल (1975-1977) शुरू हुआ था जिसमें उन्होंने कई प्रकार से कठिनाई का अनुभव किया
इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर का सबसे विवादास्पद दौर आपातकाल का समय था। 1975 में एक न्यायालय ने उन पर चुनाव में अनियमितता के आरोप लगाए, जिससे उनके प्रधानमंत्री पद पर संकट आया। इसके बाद उन्होंने देश में आपातकाल की घोषणा की, जिसके तहत कई नागरिक स्वतंत्रताएँ सीमित कर दी गईं। आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया और कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय माना जाता है। आपातकाल के समाप्त होने के बाद 1977 के चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
इंदिरा गांधी ने सत्ता में पुनः वापसी (1980-1984) के बीच फिर वापस आई।
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में हारने के बावजूद इंदिरा गांधी ने राजनीति में अपनी सक्रियता बनाए रखी। 1980 में उन्होंने पुनः सत्ता प्राप्त की और प्रधानमंत्री बनीं। इस कार्यकाल में उन्होंने भारत को औद्योगिक और तकनीकी दृष्टि से मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाए। उनके इस कार्यकाल में देश ने कृषि, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियाँ हासिल कीं।
इंदिरा गांधी की विरासत की प्रभाव और उनकी हत्या कैसे हुई?
1984 में पंजाब में सिख अलगाववादी आंदोलन ने एक गंभीर रूप ले लिया। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए इंदिरा गांधी ने “ऑपरेशन ब्लू स्टार” का आदेश दिया, जिसके तहत भारतीय सेना को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करना पड़ा, जहाँ कई सशस्त्र आतंकवादी छिपे हुए थे। इस कार्रवाई से सिख समुदाय में भारी असंतोष उत्पन्न हुआ, और अंततः 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही सिख अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी
।इंदिरा गांधी का जीवन एक साहसी और निर्णायक नेता के रूप में जाना जाता है। उनके नेतृत्व में भारत ने कई चुनौतियों का सामना किया और अनेक उपलब्धियाँ हासिल कीं। उनका जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके योगदानों को भारतीय इतिहास में हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा।
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