उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में 15 साल के एक बच्चे को कुत्ते ने काट लिया जिससे उसे रेबीज का संक्रमण उसके पूरे शरीर में फेल गया

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में 15 साल के एक बच्चे को कुत्ते ने काट लिया जिससे उसे रेबीज का संक्रमण उसके पूरे शरीर में फेल गया। कुत्ते ने एक महीना पहले काट लिया था इसकी जानकारी घर वाले मम्मी पापा को नही था ।एक महीना बीतने के बाद बच्चे में एक अलग तरीका सा बरताव होने लगा कुत्तो जैसा ब्रताओ करने लगा बच्चो से पूछने के बाद बच्चो ने बताया कि हमको एक महीना पहले पड़ोसी का कुत्ता काट लिया था ।बच्चो ने मम्मी पापा के डर से घर वालो को नही बताया कहीं बता लिए तो मम्मी पापा डटने लगे एक महीना बीतने के बाद पता चला तब तक रेबीज 🦠 पूरे शरीर में फेल चुका था । पता चलने के बाद पिता ने दर दर हॉस्पिटल घूमने लगा हॉस्पिटल में जाने के बाद हॉस्पिटल वालो ने कह दिया की बहुत देर हो चुकी है इसके शरीर में पूरी शरीर में रेबीज फेल चुका है । बोल दिया हॉस्पिटल वालो ने पर पिता ने दूसरे हॉस्पिटल ले गए दूसरे हॉस्पिटल में भी यही जवाब दिया गया /ये दर्दनाक घटना विजयनगर थाना क्षेत्र की चरण सिंह कॉलोनी की है, जहां रहने वाले याकूब मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. उनका बेटा शावेज आठवीं क्लास का छात्र था. एक सितंबर को वो अचानक अजीबो-गरीब हरकतें करने लगा. उसने पानी देखने से ही डर लगने लगा, उसने खाना पीना बंद भी कर दिया था और कभी कभी वो कुत्ते के भौंकने जैसी आवाज भी निकलने लगा. बचे 8 क्लास में पढ़ती थी बच्चा अपने पापा के गोद में तड़प तड़प के दाम तोड़ दि

सरकार एंटी रैबीज टीकाकरण पर सालाना लाखों रुपये खर्च करती है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में रैबीज फैलने से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। जबकि कुत्ते और बंदरों के काटने से बड़ी संख्या में घायल व्यक्ति सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। हर रोज जिले भर के अस्पतालों में 20 से 25 मरीज अवश्य आ रहे हैं। जिले के अस्पतालों, सीएचसी और पीएचसी पर एआरवी टीके लगाने की सुविधा दी गई है। अगर सीएचसी पर एंटी रैबीज इंजेक्शन खत्म होता है तो जिला अस्पताल में मरीजों की संख्या तीन गुना बढ़ जाती है। लेकिन, ये निश्चित नहीं है कि यह लोग कुत्ते या बंदर के काटने के बाद रैबीज से ही पीड़ित हो। सीएमएस डॉ अनिल कुमार गुप्ता ने बताया कि रैबीज ऐसी भयानक बीमारी है, जो 100 फीसद जानलेवा है। आमतौर पर मानव के शरीर में रैबीज के विषाणु रैबीज से संक्रमित किसी पशु के काटने से पहुंच जाते हैं। एक बार इन विषाणु के मनुष्य या किसी पशु की नसों में घुस जाने के बाद मृत्यु निश्चित है। लेकिन सामान्य उपायों के द्वारा इस बीमारी को शुरू होने से पहले ही रोक सकते हैं। कुत्ते के काटने के चलते 85 फीसदी मरीज रैबीज से पीड़ित होते हैं। 15 फीसदी मामलों में बिल्ली, बंदर, लोमड़ी, सियार, लंगूर आदि इस बीमारी की वजह हैं।

जानवर में रैबीज के लक्षण
– मुंह से लार टपकती रहती है।
– बेचैन रहता है।
– आंखें लाल रहती हैं।
– लोगों को काटने दौड़ता है।
– सांस लेने में दिक्कत होती है।
– दस दिन के भीतर उसकी मौत हो सकती है।
इंसान में रैबीज के लक्षण
– बेचैनी
– खाना-पानी निगलने में दिक्कत होना।
– सांस लेनें में तकलीफ
क्या करें
– अगर रैबीज से संक्रमित किसी बंदर या कुत्ते आदि ने काट लिया तो तुरंत इलाज करवाएं।
– काटे हुए स्थान को कम से कम 10 से 15 मिनट तक साबुन या डेटौल से साफ करें।
– जितना जल्दी हो सके वैक्सीन या एआरवी के टीके लगवाएं।
– पालतू कुत्तों को इंजेक्शन (टीका) लगवाएं।
क्या न करें
– कुत्ते या बंदर आदि के काटने पर इलाज में लापरवाही न बरतें।
– काटे हुए जख्म पर मिर्च न बांधे।
– घाव अधिक है तो उस पर टांके न लगवाएं।
– रैबीज के संक्रमण से बचने के लिए कुत्ते और बंदरों आदि से दूर रहें।
एक नजर टीकाकरण पर
– जिला अस्पताल में हर रोज 25-30 और माह में औसतन 1000 से 15000 लोग एंटीरेबीज टीके लगवाते हैं।
– सरकारी संस्थाओं में एंटी रैबीज का टीका मुफ्त लगाया जाता है। प्राइवेट में इसकी कीमत 400 रुपये के आसपास है।
इंट्राडर्मल एंटीरेबीज इंजेक्शन की सलाह –
अमरोहा। स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अस्पतालों को इंट्राडर्मल एंटीरेबीज टीके की सलाह दी है। जानकारों के मुताबिक अमूमन रोगियों की मांसपेशियों में इंजेक्शन दिया जाता है। इससे एक मल्टीडोज वैक्सीन करीब तीन मरीजों के लिए इस्तेमाल हो पाती है। इंट्राडर्मल विधि में वैक्सीन मांसपेशियों में न लगाकर ऊपर की खाल में लगाई जाती है।
72 घटे बाद नहीं होता असर
अमरोहा। किसी भी व्यक्ति को रेबीज से संक्रमित कुत्ते, बंदर, लोमड़ी, सियार, लंगूर आदि किसी जानवर ने काट लिया और 72 घंटे तक उसका इलाज नहीं करवाया, तो वेक्सिन और एआरवी के टीके लगावने का कोई फायदा नहीं है। इस लिए जितना जल्दी हो सके वेक्सिन और एआरवी के टीके अवश्य लगावाएं। हालांकि इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार की तरफ से जागरूकता अभियान चलाकर लोगों इलाज के प्रति जागरुक किया जाता रहा है।
दस साल बाद भी दिखने लगते हैं लक्षण
अमरोहा। प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर सुखदेव सिंह ने बताया कि रेबीज के संक्रमण से पीड़ित कुत्ते और बंदर के काटने के बाद अगर वेक्सिनेशन नहीं करवाया तो उसके लक्षण दस साल बाद भी आ सकते हैं। जब किसी भी व्यक्ति में ये लक्षण आएंगे तो उसे पानी से डर लगने लगाता है। रेबीज के संक्रमण के बाद उसका इलाज संभव नहीं है। जिस व्यक्ति में यह संक्रमण बढ़ता है तो उसकी मौत निश्चित है। इससे बचने के लिए कुत्ते या बंदर के काटने के बाद समय पर इलाज कराना आवश्यक है। समय पर इलाज मिलने से इसका संक्रमण नहीं होता है।
रेबीज एक ऐसा वायरस है जो आमतौर पर जानवरों के काटने से फैलता है। यह एक जानलेवा रोग है, क्योंकि इसके लक्षण दिखने में काफी समय लग जाता है। इस कारण यह बीमारी ज्यादा खतरनाक होती है। अगर समय रहते लोगों इसके प्रति सचेत हो जाएं, तो काफी हद तक बचा जा सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top