big news। हिंगोट युद्ध में 10 से ज्यादा लोग घायल हो गया।….

More than 10 people were injured in the Hingot war। हिंगोट युद्ध मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में हर साल दिवाली के अगले दिन आयोजित होने वाला एक पारंपरिक और रोमांचक युद्ध है। यह मुख्य रूप से इंदौर जिले के गौतमपुरा और उज्जैन जिले के रुणजी गांव में मनाया जाता है। इसमें दो गाँवों के लोग, रुणजी और गौतमपुरा, एक-दूसरे के खिलाफ हिंगोट नामक विशेष हथियारों से लड़ते हैं। हिंगोट एक प्रकार का जंगली फल है जिसे खोखला करके उसमें बारूद और अन्य विस्फोटक पदार्थ भरे जाते हैं, ताकि वह एक प्रकार की देसी रॉकेट की तरह इस्तेमाल हो सके।

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इंदौर के हिंगोट युद्ध का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ एक परंपरागत रिवाज हैं।

इस युद्ध की परंपरा कई सदियों पुरानी है और माना जाता है कि यह एक प्रकार का साहस और शक्ति प्रदर्शन है। इस परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन यह स्थानीय लोगों के बीच एक मान्यता के रूप में चली आ रही है।हिंगोट युद्ध का आयोजन दिवाली के बाद ‘देवउठनी एकादशी’ के समय होता है। इस दौरान दो दल बनाए जाते हैं – एक “तुर्रा” और दूसरा “कलंगी”। दोनों दल एक दूसरे पर हिंगोट फेंकते हैं, जो बारूद और विस्फोटक पदार्थ से भरे होते हैं। लोग सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अपनी परंपरागत वेशभूषा और ढाल-तलवार के साथ इस युद्ध में भाग लेते हैं।

इंदौर के हिंगोट युद्ध में लोगो को अपना नुकसान भी झेलना पड़ता हैं।

इस युद्ध में कई बार लोग घायल हो जाते हैं और जानलेवा हादसे भी होते हैं। इसके कारण कई बार इस पर रोक लगाने की भी चर्चा होती है, लेकिन स्थानीय लोग इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं और इसे रोकने के विरोध में रहते हैं। इस त्योहार हिंगोट युद्ध को देखने के लिए इंदौर के गौतमपुरा में में लोगो का काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलता हैं और इस युद्ध का आयोजन दीपावली के एक दिन बाद दो गांव के बीच खेला जाता हैं . 

जिसमें लोगो को घायल भी देखा जाता हैं । लेकिन इस बार के हिंगोट युद्ध में पूरी तरह सुरक्षा को देखते हुए हिंगोट युद्ध मनाया गया जिसमें किसी व्यक्ति की जान जाने की खबर सामने नहीं आया हैं । वही केवल 10 से 12 लोगो को थोड़ा बहुत चोट आई हैं और उसे इलाज के लिए फौरन अस्पताल लिया गया। इंदौर हिंगोट युद्ध को लेकर सुरक्षा का भी ध्यान रखा गया था और चारों तरफ जवान को तैनात कर दिया गया था और साथ में एंबुलेंस सेवा भी शामिल किया गया था जिससे कि कोई भी इंसान को गंभीर चोट आए तो उसे फौरन अस्पताल लिया जा सके

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हिंगोट का क्या मतलब होता हैं?

हिंगोट एक प्रकार का जंगली फल होता है, जो कि नारियल के आकार का होता है। इसके अंदर गूदा होता है जिसे बाहर निकालकर इसको खोखला दिया जाता है। इसके बाद इसके अंदर बारूद, गंधक और चूना जैसी ज्वलनशील सामान को भर दी जाती है, जिससे यह एक प्रकार का देसी पटाखा बन जाता है। इस तरह तैयार किए गए हिंगोट को फिर आग लगाकर युद्ध में एक दूसरे पर फेंका जाता है। जिसमें की हिंगोट जलते हुए एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने का काम करता हैं। लोग इस हिंगोट युद्ध में भाग लेने के लिए पहले से तैयारी कर ली होती हैं और फिर हिंगोट युद्ध का आयोजन किया जाता हैं।

हिंगोट युद्ध का आयोजन कैसे होता हैं ?

हिंगोट युद्ध का आयोजन करने के लिए लोग पहले से ही युद्ध की तैयारी कर ली होती हैं । जैसे हिंगोट बनाना युद्ध में भाग लेना फिर दीवाली बीतने के बाद इस युद्ध का आयोजन किया जाता हैं ।हिंगोट युद्ध मुख्य रूप से दो गांवों के बीच होता है – गौतमपुरा और रुणजी।

यह आयोजन इस क्षेत्र की परंपरा के रूप में मशहूर है। इस युद्ध में दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे के खिलाफ “योद्धाओं” के रूप में खड़े होते हैं और यह युद्ध वास्तविक युद्ध जैसी स्थिति पैदा करता है। हिंगोट युद्ध में दो टीमें बनती हैं – एक टीम का नाम “तुर्रा” होता है और दूसरी का “कलंगी”। दोनों टीमें अपनी पारंपरिक पोशाक और हथियारों के साथ युद्ध में शामिल होती हैं।

हिंगोट युद्ध का क्या उद्देश्य हैं आए जानते हैं।

हिंगोट युद्ध का उद्देश्य का ऐसा को उदेस्य नहीं हैं कि इतिहास के में किसी तरह का जिक्र किया गया हो । लेकिन हिंगोट युद्ध को मनाने का ऐतिहासिक कारण होगा द्वारा जिक्र किया जाता हैं और इस युद्ध का आयोजन किया जाता हैं । कहा जाता हैं कि प्राचील काल में तुर्रा और कलंगी के बीच युद्ध हुआ था और उसी समय से आज तक इस युद्ध को मानने का परंपरा चली आ रही हैं.जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। हालांकि, इसे साहस और पराक्रम के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इस युद्ध को खेल और परंपरा के रूप में माना जाता है जिसमें गांववाले एकता, साहस और वीरता का प्रदर्शन करते हैं।

हिंगोट युद्ध की प्रक्रिया में क्या दिखाई देता हैं।

युद्ध की शुरुआत होते ही दोनों पक्ष के बीच दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकना शुरू कर देते हैं। यह युद्ध शाम के समय होता है और लगभग रात तक चलता है। जब हिंगोट जलते हुए फेंके जाते हैं तो चारों ओर आग और धुएं का दृश्य रहता है। कुछ लोग इसे रोमांचक मानते हैं और अद्वितीय परंपरा मानते हैं, तो वहीं कुछ लोग इसे खतरनाक और असुरक्षित मानते हैं।

हिंगोट युद्ध सांस्कृतिक महत्व का हिस्सा हैं जिन्हें प्राचीन भारत में भी किया करते थे।

भारत की संस्कृति में प्राचीन काल से ही कई अनूठी परंपराएँ और त्योहार शामिल हैं, जिनका इतिहास और महत्व अलग-अलग समय, समुदायों और स्थानों से जुड़ा है। इनमें से एक परंपरा है – “हिंगोट युद्ध”, जो मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में विशेष रूप से मनाई जाती है।हिंगोट युद्ध एक ऐसी परंपरा है जो प्राचीन इतिहास से जुड़ी है। इसमें साहस, पराक्रम और परंपरा का संगम देखने को मिलता है। यह युद्ध न केवल मालवा क्षेत्र की विशेषता है, बल्कि यह भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति का भी उदाहरण है। हालांकि, आधुनिक समय में इसे सुरक्षित रूप से आयोजित करने की आवश्यकता है ताकि यह परंपरा जीवित रहे और किसी भी प्रकार की हानि से बचा जा सके।

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