Jivitputrika vrat kyo manaya jata hain 2023: /जितिया व्रत क्यों मनाया जाता हैं।?

Jivitputrika vrat kyo manaya jata hain 2023: माताएं अपनी संतान व बच्चो के सुख-समृद्धि अच्छी जीवन के लिए जितिया Jivitputrika का  व्रत रखती हैं।जिससे उसकी संतान व बच्चे की लंबी आयु और अच्छा जीवन जी सके इस व्रत को दो नमो से जाना जाता है जितिया और Jivitputrika

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कब से सुरू होगा Jivitputrika व्रत।

हर साल में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत रखती है माताएं। इस दिन माताएं अपनी संतान व बच्चो की लंबी आयु व खुशहाली कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं माताएं न ही कुछ खाती हैं और न ही कुछ पीती है जब तक व्रत पूरा नहीं होती है। जितिया व जीवित्पुत्रिका व्रत को एक कठिन व्रतों में से एक माना जाता है जो को महिलाएं अपनी संतान के अच्छी जीवन के लिए व्रत रखती हैं यह व्रत मुख्य रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में मनाया जाता है. वहीं जितिया व्रत नेपाल में भी काफी लोकप्रिय है

जितिया व Jivitputrika व्रत किस दिन खत्म होगा?

जितिया व जीवित्पुत्रिका व्रत 5 अक्तूबर से 7 अक्तूबर तक रहेगा 7अक्तूबर को खत्म हो जाएगा

5 अक्तूबर 2023 – नहाय खाय
6 अक्तूबर 2023 – जितिया व्रत
7 अक्तूबर 2023 – व्रत पारण
Jivitputrika vrat kyo manaya jata hain 2023: /जितिया व्रत क्यों मनाया जाता हैं।?
Jivitputrika vrat kyo manaya jata hain 2023: /जितिया व्रत क्यों मनाया जाता हैं।?

जितिया व्रत मुहुर्त क्या हैं 2023 में।?

आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को 6 अक्तूबर 2023 को सुबह 6 बजकर 34 मिनट में सुरू होगा और अष्टमी तिथि की समाप्ति 7 अक्तूबर 2023 को प्राप्त 8 बजकर 8 मिनट पर खत्म हो जाएगा।व्रत पारण सुबह के 08.08 (7 अक्तूबर 2023)

Jivitputrika जितिया व्रत कितना दिन तक चलता है?

जितिया व्रत नहाय खाय सप्तमी तिथि से सुरू होती है । और व्रत पारण तिथि को समाप्त हो जाती है जो की लगातार तीन दिन तक जितिया पर्व की पूजा व व्रत रखती हैं महिलाएं इस में महिलाए पवित्र नदी में स्नान के बाद पूजा का सात्विक भोग बनाती है और अगले दिन अष्टमी को निर्जला व्रत रखती है तथा नवमी तिथि को इसका पारण किया जाता है।

जितिया व्रत पूजा विधि 2023:

जितिया व्रत का संबंध आदिकाल महाभारत के समय से ही परंपराएं चली आ रही है जितिया व्रत को महाभारत के समय भी किया जाता था उस समय महिलाए अपने शिष्य के लिए व्रत रखती थी उसकी अच्छी शिक्षा ऐव उसकी लंबी आयु हो।जितिया व्रत में स्त्रियां स्नान के बाद कुशा से बनी जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा के सामने दीप धूप चावल और पुष्प अर्पित कर विधि विधान से महिलाए पूजा अर्चना करती है।इसके साथ ही व्रत में गाय के गोबर और मिट्टी से चील और सियारिन का प्रतिमा

बनाई जाती हैं पूजा करते हुवे इनके माथे पर सिंदूर लगाया जाता हैं और पूजा में जीवित्पुत्रिका की सुनते है महिलाए पूजा अर्चना करने के बाद भोजन और और जल खाती पीती हैं इस व्रत में महिलाए अपने शिष्य और परिवार के लिए व्रत रखती हैं जिससे की उसे अच्छी जीवन और लंबी आयु मिल सके ।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाए अपने संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को रखती है और जिसका संतान है बो संतान की लंबी आयु और उसकी रक्षा के लिए इस व्रत को रखा करती है महिलाए जिससे की की उसकी संतान चारो दिसा में प्रसिद्ध हो और उसकी हर मानो कामना पूरी हो सकेl पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत काल में जिस समय युद्ध हो रहा था उस दौरान अश्वत्थामा पिता के मृत्यु के संदेश सुन कर बहुत काफी नाराज हो गए थे वे अपने बदले की आग में जल रहे थे और वे पांडो की शिविर में चले गए। शिविर में वे गए तो वो पाच लोगो को सोते देखा और जिसे अश्वत्थामा पांडवों उसे मृत्यु लोक भेज 
दिया मारे गए ये पाच लोग द्रोपति का शिष्य माना जाता है ।इस घटना के बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना कर दिव्य मणि सक्ति छीन ली जिससे क्रोधित हो गए अश्वत्थामा ने जिसके बाद  गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के बच्चे को मौत के घाट उतार दिया इसके बाद भगवान कृष्ण ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की अजन्मी संतान को अपने सभी पुण्य का फल देकर गर्भ में ही जीवित कर दिया. गर्भ में जो बचा पल रहा था उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया तब से माताएं अपने बच्चो की लंबी आयु और उसके सुरक्षा के लिए जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत का प्रचलन हुआ।

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